आपको बतादें की क्रन्तिकारी भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था | देश के लिए मर मिटने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 का दिन फांसी के लिए मुकर्रर किया गया था|
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने हंसते हंसते फांसी को गले लगा लिया था. मौत से पहले इन देशभक्तों से आखिरी इच्छा पूछा गया था तो तीनो ने आपस में गले मिलने के लिए बोला, और फिर वायदे के अनुसार शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव एक दूसरे से गले मिले, और इंकलाब जिन्दा बाद का नारा लगाया और हसते हसते फांसी पर चढ़ गए | एक दिन पहले 22 मार्च 1931 को अपने आखिरी पत्र लिखा था |
‘साथियों स्वाभाविक है जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए. मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं, लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैंद होकर या पाबंद होकर न रहूं. मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है. क्रांतिकारी दलों के आदर्शों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में मैं इससे ऊंचा नहीं हो सकता था. मेरे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह की उम्मीद करेंगी. इससे आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना नामुमकिन हो जाएगा. आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है. कामना है कि यह और नजदीक हो जाए.’
फांसी से पहले भगत सिंह ने बुलंद आवाज में देश के नाम एक संदेश भी दिया था. भगत सिंह ने इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए कहा, मैं ये मानकर चल रहा हूं कि आप वास्तव में ऐसा ही चाहते हैं. अब आप सिर्फ अपने बारे में सोचना बंद करें, व्यक्तिगत आराम के सपने को छोड़ दें, हमें इंच-इंच आगे बढ़ना होगा. इसके लिए साहस, दृढ़ता और मजबूत संकल्प चाहिए. कोई भी मुश्किल आपको रास्ते से डिगाए नहीं. किसी विश्वासघात से दिल न टूटे. पीड़ा और बलिदान से गुजरकर आपको विजय प्राप्त होगी. ये व्यक्तिगत जीत क्रांति की बहुमूल्य संपदा बनेंगी.