दीपावली का त्यौहार
भारत में दीपावली का त्यौहार काफी मशहूर है, लेकिन इस पर्व से पहले भी कुछ पर्व आते हैं जो हमें दीपावली के आने का संकेत देते हैं। जैसे कि शारदीय नवरात्रि, विजयदशमी यानी कि दशहरा और धनतेरस… धनतेरस एक ऐसा पर्व है जब भारतीय बाज़ारों में खूब चहल-पहल होती है, ना केवल इसलिए कि लोग दीपावली की खरीददारी के उद्देश्य से आते हैं, वरन् धनतेरस अपने आप में ही एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्यौहार है…

लक्ष्मी-गणेश पूजन
लोग नए बर्तन खरीदते हैं, वस्त्र लेते हैं, लक्ष्मी-गणेश पूजन करते हैं… धनतेरस पर कम से कम एक बर्तन खरीदना अनिवार्य माना गया है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस दिन से कोई किसी को अपनी वस्तु उधार नहीं देता। इसलिए लोग अपने लिए नई वस्तुएं लेते हैं।
मान्यताएं
इसके अलावा भी कुछ अन्य मान्यताएं हैं, जैसे कि शास्त्रों में इस बारे में कहा है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती।
नए बर्तन ख़रीदना शुभ
इसके अलावा इस दिन पुराने बर्तनों को बदलना व नए बर्तन ख़रीदना शुभ माना गया है। यूं तो लोग बर्तन खरीदते ही हैं लेकिन खास रूप से इस दिन चांदी के बर्तन ख़रीदने से अत्यधिक पुण्य लाभ होता है।
शुभ लाभ
यदि आप धनतेरस के दिन ऐसे ही कुछ अत्यधिक शुभ लाभ पाना चाहते हैं तो इसके उपाय भी शास्त्रों में वर्णित है। उदाहरण के लिए इस दिन हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमल की शाखा डालकर लगातार तीन बार अपने शरीर पर फेरना तथा कुंकुम लगाना चाहिए।

तीन दिन तक दीपक
कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, कुआं, बावली, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए। तुला राशि के सूर्य में चतुर्दशी व अमावस्या की संध्या को जलती लकड़ी की मशाल से पितरों का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।
त्यौहार की कहानी
चलिए आपको इस त्यौहार की कहानी के बारे में बताते हैं… एक पौराणिक कथा के अनुसार एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे, तभी उनकी अर्धांगिनी लक्ष्मी जी ने भी साथ चलने का आग्रह किया। पत्नी के आग्रह करने पर विष्णु जी बोले, “यदि मैं जो बात कहूं, वैसे ही मानो, तो चलो।“

भगवान विष्णु
लक्ष्मी जी ने स्वीकार किया और भगवान विष्णु, लक्ष्मी जी सहित भूमण्डल पर आए। कुछ देर बाद एक स्थान पर भगवान विष्णु लक्ष्मी से बोले, “जब तक मैं न आऊं, तुम यहां ठहरो और वे दक्षिण दिशा की ओर निकल गए लेकिन लक्ष्मी जी से कह गए कि तुम इस ओर मत देखना।“
लक्ष्मी जी
लेकिन लक्ष्मी जी को यह जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि आखिरकार दक्षिण दिशा में ऐसा क्या है जो स्वामी ने उन्हें उस ओर देखने से मना किया है। लक्ष्मी जी से रहा न गया और वे भी विष्णु जी की उसी राह की ओर निकल पड़ीं।
सरसों का खेत
कुछ ही दूर पर सरसों का खेत दिखाई दिया, वह ख़ूब फूला था तो उसके आकर्षण से आकर्षित हो वे उधर ही चलीं। सरसों की शोभा से वे मुग्ध हो गईं और उसके फूल तोड़कर अपना श्रृंगार किया और आगे चलीं। आगे गन्ने (ईख) का खेत खड़ा था। लक्ष्मी जी ने चार गन्ने लिए और रस चूसने लगीं।
विष्णु जी आए
उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज़ होकर शाप दिया, “मैंने आप से इधर आने को मना किया था, पर आपने मेरी बात को नहीं माना, और यह किसान की चोरी का अपराध कर बैठीं। अब तुम उस किसान की 12 वर्ष तक इस अपराध की सज़ा के रूप में सेवा करो।“
शाप दिया
अब भगवान का कहा लक्ष्मी जी कैसे टाल सकती थीं। आज्ञानुसार वे एक किसान के घर एक गरीब स्त्री बनकर आसरा पाने की चाह से रहने लगीं। लेकिन कहते हैं कि वह किसान अति दरिद्र था। लेकिन लक्ष्मी जी ने यह प्रतिज्ञा ली कि जिस किसान ने मुझे शरण दी है, मैं उसके घर समृद्धि लाऊंगी।
देवी लक्ष्मी का पूजन
एक दिन लक्ष्मीजी ने किसान की पत्नी से कहा, “तुम स्नान कर पहले इस मेरी बनाई देवी लक्ष्मी का पूजन करो, फिर रसोई बनाना, तुम जो मांगोगी मिलेगा।“ किसान की पत्नी ने लक्ष्मी के आदेशानुसार ही किया।
लक्ष्मी की कृपा
पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया और लक्ष्मी से जगमग होने लगा। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनन्द से कट गए।
शाप का समय पूर्ण हो गया
इसी के साथ विष्णु जी द्वारा लक्ष्मी जी को दिये हुए शाप का समय भी पूर्ण हो गया था। इसके अनुसार विष्णुजी, लक्ष्मीजी को लेने आए, लेकिन किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। लक्ष्मी भी बिना किसान की मर्जी वहां से जाने को तैयार न थीं। तब विष्णुजी ने एक चतुराई की….
विष्णुजी लक्ष्मी को लेने आए
विष्णुजी जिस दिन लक्ष्मी को लेने आए थे, उस दिन वारुणी पर्व था। अत: किसान को वारुणी पर्व का महत्त्व समझाते हुए भगवान ने कहा, “तुम परिवार सहित गंगा में जाकर स्नान करो और इन कौड़ियों को भी जल में छोड़ देना। जब तक तुम नहीं लौटोगे, तब तक मैं लक्ष्मी को नहीं ले जाऊंगा।“
चार कौड़ियां
जैसा भगवान ने कहा था ठीक उसी तरह से लक्ष्मीजी ने किसान को चार कौड़ियां गंगा के देने को दी और किसान भी सपरिवार स्नान करने के लिए निकल गया। जैसे ही उसने गंगा में कौड़ियां डालीं, वैसे ही चार हाथ गंगा में से निकले और वे कौड़ियां ले लीं। तब किसान को आश्चर्य हुआ कि वह तो कोई देवी है।
गंगाजी
किसान से रहा ना गया और उसने गंगाजी से पूछा, “हे देवी! ये चार भुजाएं किसकी हैं?” गंगाजी बोलीं, “वे चारों हाथ मेरे ही थे। तूने जो कौड़ियां भेंट दी हैं, वे किसकी दी हुई हैं?” किसान ने उत्तर दिया कि मेरे घर जो स्त्री आई है, उन्होंने ही दी हैं।’

साक्षात लक्ष्मी
इस पर गंगाजी बोलीं, “तुम्हारे घर जो स्त्री आई है वह साक्षात लक्ष्मी हैं और पुरुष विष्णु भगवान हैं। तुम लक्ष्मी को जाने मत देना, नहीं तो पुन: निर्धन हो जाआगे।’ यह सुन किसान घर लौट आया। वहां लक्ष्मी और विष्णु भगवान जाने को तैयार बैठे थे।
किसान ने लक्ष्मीजी का आंचल पकड़ा
किसान ने लक्ष्मीजी का आंचल पकड़ा और बोला- ‘मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगा। तब भगवान ने किसान से कहा- ‘इन्हें कौन जाने देता है, परन्तु ये तो चंचला हैं, कहीं ठहरती ही नहीं, इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था, जो कि 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है।“
किसान परेशान हो गया
यह सुन किसान और भी परेशान हो गया लेकिन वह तो हठ लगाए बैठा था कि किसी भी कीमत पर देवी लक्ष्मी को वहां से जाने नहीं देगा। वह विष्णु जी से बोला, “तुम कोई दूसरी स्त्री यहां से ले जाओ।“
लक्ष्मीजी ने कहा
तब लक्ष्मीजी ने कहा-‘हे किसान! तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं जैसा करो। कल तेरस है, मैं तुम्हारे लिए धनतेरस मनाऊंगी। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और सांयकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपया भरकर मेरे निमित्त रखना, मैं उस कलश में निवास करूंगी।
धनतेरस
वे आगे बोलीं, “हे किसान! जब त्य्म पूजा करोगे तो मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। लेकिन मैं इस दिन की पूजा करने से वर्ष भर तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। मुझे रखना है तो इसी तरह प्रतिवर्ष मेरी पूजा करना।“
धनतेरस के दिन पूजा
इस कथा के आधार पर आज भी देवी लक्ष्मी की धनतेरस के दिन पूजा की जाती है। लेकिन वैदिक परम्परा के अनुसार इसदिन यमराज जी की पूजा की जाती है। इस दिन हिन्दू परिवारों में पूर्ण विधि-विधान से पूजा की जाती है
मृत्यु के देवता
पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। यह पूजा दिन में नहीं की जाती अपितु रात्रि होते समय यमराज के निमित्त एक दीपक जलाया जाता है।
आटे का दीपक
इस दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता हैं इस दीप को जमदीवा अर्थात यमराज का दीपक कहा जाता है। रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर नई रूई की बत्ती बनाकर, चार बत्तियां जलाती हैं। दीपक की बत्ती दक्षिण दिशा की ओर रखनी चाहिए।
दक्षिण दिशा
जल, रोली, फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर स्त्रियां यम का पूजन करती हैं। चूंकि यह दीपक मृत्यु के नियन्त्रक देव यमराज के निमित्त जलाया जाता है, अत: दीप जलाते समय पूर्ण श्रद्धा से उन्हें नमन तो करें ही, साथ ही यह भी प्रार्थना करें कि वे आपके परिवार पर दया दृष्टि बनाए रखें और किसी की अकाल मृत्यु न हो।